हंडिया। भारतीय संस्कृति में गाय केवल एक पशु ही नहीं है बल्कि उसे माता का दर्जा दिया गया है।ऐसा माना जाता है कि गाय में हमारे सभी देवी-देवता निवास करते हैं।मात्र इसी वजह से गाय की सेवा से ही भगवान प्रसन्न हो जाते हैं।हिन्दू धर्म में मान्यता है कि जो मनुष्य प्रात: स्नान करके गौ स्पर्श करता है, वह पापों से मुक्त हो जाता है।वेद पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति गौमाता की सेवा करता है,उस पर आने वाली विपदाएं समाप्त हो जाती हैं। आजकल भारत में जहां गौरक्षा, गौसुरक्षा और गौ संवर्धन को लेकर कवायदे हो रही हैं, वहीं भगवान श्रीकृष्ण के देश में पवित्र गाय अपनी प्राण रक्षा के लिए कूड़े के ढेर में कचरा और प्लास्टिक खाने पर मजबूर हैं।
कुत्ते खा रहे विस्किट,गौमाता खा रही पॉलिथीन
आज की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि कुत्ते बिस्किट खा रहे है और पेट की आग बुझाने के लिए सैंकड़ों गौमाता प्लास्टिक बैग खाकर प्रतिदिन अकाल मौत का शिकार बन रही हैं।ऐसे में यह सवाल विचारणीय हो जाता है कि आखिर क्या वजह है कि भारतीय संस्कृति में बेहद उच्च स्थान रखने वाली गौमाता इस समय दर-दर की ठोकरें खा रही हैं ?क्यों प्राचीन काल से ही भारत में समृद्धि का प्रतीक मानी जाने वाली गौमाता आज भूखी प्यासी और कचरे के ढेर पर पॉलीथिन और कूड़ा करकट खाने को मजबूर हैं ? पॉलीथिन खाने से गायों व अन्य जानवरों के मरने की घटनाएं तो अब आम हो गई हैं।
जानवरों के लिए भी हानिकारक है पॉलिथीन
कोर्ट के पॉलीथिन पर प्रतिबंध के निर्देश के बावजूद तहसील मुख्यालय सहित पूरे क्षेत्र में अब तक इस पर रोक नहीं लग सकी है,बाजार में सरेआम दुकानदारों द्वारा उपयोग की जा रही प्रतिबंधित पॉलीथिनों को चारा नहीं मिलने की वजह से खाकर गाय मर रही हैं।प्लास्टिक सिर्फ मानव जीवन और पर्यावरण के लिए ही नहीं वल्कि जानवरों के लिए भी बेहद हानिकारक है। पॉलीथिन गलता नहीं है।गौमाता द्वारा इसको खा लेने पर वह अंदर जाकर अमाशय में जमा हो जाता है जिससे पाचन क्रिया बिल्कुल विगड़ जाती है। गैस की शिकायत बढ़ने से पेट फूलता है।जिसके कारण गौमाता तड़प तड़प कर दम तोड़ देती है।
बदहाली की जिंदगी जीने को मजबूर
हिन्दू धर्म में तो गाय के महान और अनमोल गुणों को देखते हुए उसे मां, देवी और भगवान का दर्जा दिया गया है। गाय वैदिक काल से ही भारतीय धर्म, संस्कृति, सभ्यता और अर्थव्यवस्था का प्रतीक रही है।परंतु क्यों आजकल गौमाता सड़कों पर आवारा घूमती दिखती हैं और भूखी गौमाता कचरे से गंदगी व पॉलिथीन खाने को मजबूर हैं। सुख-समृद्धि की प्रतीक रही भारतीय गायें आज कूड़े में प्लास्टिक की थैलियां खाती दिखती हैं। कैसी विडंबना है कि आज के समय में गायें घोर उपेक्षा और बदहाली की जिंदगी जी रही हैं और भूख से दम तोड़ रही हैं। सड़कों के किनारे फेंकी गई खाद्य वस्तुओं के साथ-साथ प्लास्टिक खाने से गाय की दर्दनाक मौत होने की घटनाएं आम हो गई हैं।लेकिन हमारे क्षेत्र के यशश्वी और हितैषी जनप्रतिनिधियों को इस ओर ध्यान देने की फुर्सत ही नहीं है।