“पुरातत्व-विद और  हेरिटेज मेनेजमेंट विशेषज्ञ ने किया बाजीराव पेशवा छत्री का मुआयना”
सुनील पटल्या बेड़िया ( खरगोन) | गत दिवस समीपस्थ रावेर खेड़ी स्थित अजेय मराठा योद्धा की श्रीमंत बाजीराव पेशवा प्रथम की छत्री और सराय का मुआयना करने निमाड़ क्षेत्र में- शिवधाम प्रोजेक्ट के अंतर्गत अपना शोध कार्य कर रहे पुरातत्ववेत्ता शिवम दुबे तथा क्षेत्र के युवा विरासत प्रबंधन विशेषज्ञ गौरव मण्डलोई पहुंचे| इस दौरान उन्होंने सराय के आसपास की जगहों में फैली कई पुरामहत्त्व की चीजों को ढूंढा और अवलोकन कर ज्ञानवर्धक जानकारियाँ साझा की | श्री दुबे ने सराय परिसर में पीपल के पेड़ के निचे स्थापित हनुमान मंदिर और उसके आसपास बिखरी हुई मूर्तियों को देख कर चिंता जताई और ध्यान से देखने पर वहां मूर्तियों के अवशेषों की पहचान करते हुए बताया की यह मूर्तियाँ 12 वीं शताब्दी के आसपास की हो सकती है| चर्चा में गौरव मण्डलोई ने बताया की आज जो हनुमान मंदिर में मूर्ति स्थापित है, उस मूर्ति की स्थापना बाद में की गई होगी और उसकी शैली जनजातीय हो कर यह मुर्ति इस क्षेत्र के पत्थर से ही निर्मित है, लेकिन इस जगह का मुख्य मंदिर पीपल के पेड़ के तने से घिरा और जकड़ा हुआ है, जिसके तने का विकास सैकड़ों वर्षों में हुआ होगा | पुराने मंदिर में पाषाण के हनुमान का विग्रह है जो जमीन से करीब 3 फीट ऊपर पेड़ के तने में जकड़ा हुआ है, बारीकी से देखने पर पता चला की इस प्रकार के हनुमान जिनकी पूंछ भुजा के पास तक आती है, उनके इस चित्रण को लपेटा हनुमान कहा जाता है | इसी के साथ साथ पास ही बिखरे हुए पत्थरों को पलटने पर पता चला, ये मूर्तियों के अवशेष है, जिनमे से कुछ को पहचानना उनकी मुद्राओं तथा स्वरुप ने आसान कर दिया| इन मूर्तियों में गौरी, अम्बिका, वाराही, गणेश आदि शामिल है और यह परमार कालीन हो सकती है| समय के साथ प्राकृतिक बदलाव और समय के साथ हुए क्षरण तथा मूर्तियों पर सिन्दूर लगा होने से सही सही पहचान पाना मुश्किल भी है| दो युवा विशेषज्ञों की एक साधारण प्रवास यात्रा से यह खुलासा हुआ है की इस स्थान पर मराठा शासन काल से पहले भी मंदिर हुआ करता था| ज्ञात हो की धार के राजा भोज और उज्जैनी के राजा विक्रमादित्य भी परमार वंश से थे और परमार कालीन मंदिर निमाड़-मालवा में कई जगह देखने मिलते हैं| ऊन और ऊंकारेश्वर में ऐसी पाषाण मुर्तियां प्राप्त हुई है। 

 

“रामेश्वर मंदिर जल्द बनेगा राज्य संरक्षित स्मारक”

 

सराय और छत्री देखने के बाद दोनों विशेषज्ञ ग्राम के युवा सामाजिक कार्यकर्ता अनिल बिरला के साथ समीप ही पहाड़ी पर जीर्ण शीर्ण अवस्था में संरक्षण की बाट जोह रहे पेशवा कालीन रामेश्वर मंदिर पहुंचे जहाँ मंदिर की वर्तमान स्थिति पर गहरी चिंता दर्शाते हुए इसके बारे में संरक्षण कार्य कैसे शुरू हो, इस हेतु चर्चा की| लखौरी इंट, चुने, लकड़ी और पत्थरों से निर्मित इस मंदिर के बारे में ऐसा अनुमान है की इस मंदिर के निर्माण को करीब २५० वर्ष से ज्यादा हो चुके है | इस मंदिर के बारे में कुछ पुस्तकों में उल्लेख मिलता है की इसका निर्माण बाजीराव प्रथम की पत्नी काशीबाई ने १७३० के लगभग करवाया था| नर्मदा किनारे की पिली मिटटी की पहाड़ी पर बना होने की वजह से मंदिर का भारी ढांचा अन्दर भी धंस रहा है और इसमें दरारें भी आ गई है| ज्ञात हो की यह  मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा जारी संरक्षित सूचि में शामिल नहीं है, इस वजह से अभी इसकी देख-रेख हेतु कोई जिम्मेदार नहीं है| ग्राम के युवाओं द्वारा इस मंदिर प्रांगण में पौधारोपण किया गया है और यहाँ उन्ही के द्वारा साफ़ सफाई की जाती है| युवानों की इस पहल से यहाँ श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है, और धर्मिक आयोजन होते रहते है| एसी स्थिति में  इस मंदिर के संरक्षण और इसे बचाने के मुद्दे पर प्रकाश डालते हुए गौरव मण्डलोई ने बताया की इस मंदिर को राज्य शासन द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित करने हेतु कार्यवाही प्रारम्भ जी जा चुकी है| श्रीमंत बाजीराव पेशवा जनकल्याण समिति, विषय के विशेषज्ञों और रावेर खेड़ी के युवाओं  के सहयोग से यह कार्य जल्द ही मूर्त रूप लेगा| मध्य प्रदेश के राज्य पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आने के बाद इस मंदिर के जीर्णोद्धार, संरक्षण, सुरक्षा और देखरेख की जिम्मेदारी शासन के विभाग द्वारा उठाई जाएगी और इस 17 वीं शताब्दी के पूरा-महत्त्व के स्मारक को पहचान भी मिलेगी| अभी तक सिर्फ बाजीराव पेशवा छत्री और सराय को पर्यटक देखने आते थे लेकिन युवाओं की इस पहल के बाद इस स्मारक का महत्त्व भी बढेगा| एनटीपीसी द्वारा भी यहाँ पहाड़ी पर पहूँच मार्ग बनाने हेतु आर & आर विभाग की मद से राशी देने की घोषणा भी की गई है| गौरव मंडलोई एवं  अनिल बिरला ने बताया कि सम्बंधित आधिकारियों के दिशा निर्देशानुसार तहसील कार्यालय के माध्यम से इसे राज्यशासन के संचनालय एवं पुरातत्व विभाग में इसे जुड़वाने एवं जीर्णोद्धार हेतु निवेदन पत्रक तथा आवेदन दिए जाने वाले है|