हरदा। गौरज ग्राम गहाल में प्रेममूर्ति पंडित श्री अभिषेकानंद जी महाराज के श्री मुख से 28 फरवरी से 5 मार्च तक प्रबाहित हो रही श्री मद भागबत कथा में महाराज श्री ने कथा के तृतीय दिवस का शुभारंभ विश्व शांति की पार्थना के साथ किया कथा के मुख्य यजमान चाचरे परिवार व हजारों की संख्या में भक्तों ने महाराज जी के श्रीमुख से कथा का श्रवण किया।
भागवत कथा के तृतीय दिवस पर महाराज श्री ने भागवत कथा में बताया की जिस व्यक्ति की मृत्यु सातवें दिन हो उसको क्या करना चाहिए ? इस वृतांत का विस्तार से वर्णन किया।
भागवत कथा के तृतीय दिवस की शुरुआत भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई।
कथा प्रारंभ से पूर्व आज समिति के भक्तो ने महाराज श्री का साफा पहनाकर अभिबादन किया।
- कथा के तृतीय दिवस की शुरुआत में महाराज श्री ने कथा की शुरूआत करते हुए कहा कि मृत्यु हम सब की निश्चित है। हमें कोई बचा नहीं सकता। राजा परीक्षित गंगा के ही तट पर क्यों गए ? गंगा के तट पर हमेशा संतों का वास रहता है। कही न कही संत महात्मा आपको मिल ही जायेंगे। अगर आप गंगा के तट पर, तीर्थ धाम पर जायेगे। कही न कही संत मिलेंगे ही। और निश्चित तौर पर विषम परिस्थितियों में अगर कोई हमारा सहयोग कर सकता है तो कोई सद विचार वाले संत महात्मा गुरुजन ही हमारी सहयता कर सकते है। जीवन में कठिन परिस्थितिया तो सबके आती है। उन कठिन परिस्थितियों में अगर सलाह संसार से लोगें तो सांसारिक सलाह मिलेगी और अगर किसी आध्यत्मिक आत्मा से सलाह लोगें तो निश्चित जन कल्याण का ही नहीं बल्कि कल्याणकारी ऐसा मार्ग मिलेगा की गोविन्द तक आपको पहुंचने में अधिक बिलंभ नहीं लगेगा। महाराज श्री ने कथा क्रम बढ़ाते हुए कहा कि आप सभी लोगो ने कई बार कथा सुनी होगी। अनेको पुराण सुने होंगे, अनेको बार आपने कथा सुनी होगी क्या किसी भी कथा में आपने सुना है की भगवान का मिलना असंभव है। जवाब दीजिये। महाराज जी ने कहा कि तीन चीजे मेरी नजर में असंभव है। और अगर ये तीन चीजे आपको मिल जाएं तो संसार में कुछ भी असंभव नहीं। ईश्वर को पाना बहुत ही सरल हो जायेगा। तीन चीजे बहुत ही कठिन है। 1 एक तो मानव होना बहुत ही मुश्किल काम है। देवताओं को भी संभव नहीं। एक बार देवता तपस्या कर रहे थे। विष्णु भगवान ने पूछा। तुम स्वर्ग के रहने वाले देवता हो, सब सुविधाएं है। सारे सुखो की चरम सीमा जहाँ पर कोई सीमा ही नहीं है हर सीमा से पार तुम्हे हर सुख सुविधा मिल रही है। इसके बाद भी तुम्हे अब क्या चाहिए ? तपस्या क्यों कर रहे हो ? बोले महाराज हमें कुछ चाहिए इसलिए तपस्या कर रहे है। विष्णु भगवान बोले क्या चाहिए? बोले हमें मानव तन चाहिए। भगवान बोले मानव ? अरे मानव से ही तो देवता बनते है। तुम फिर नीचे जाना चाहते हो। बोले महाराज जो बिषय मानव योनि में संभव है। वो देव योनि में सम्भव है ही नहीं। पूछा क्या ? मानव योनि में क्या सम्भव है। बोले मानव योनि में सहज संभव है। मुक्ति आपके पास आना, आपके धाम आना, हम देवता है पर आपकी मर्जी के बगैर आपके धाम नहीं आ सकते। और मानव योनि में ये शक्ति है की वो आपके धाम आ सकते है। वो मुक्ति प्राप्त कर सकता है। 1 मानव होना दुर्लभ है असंभव है अगर ये मिल जाए तो भारत का मानव होना असंभव है। ये पुराणिक बात कर रहा हूँ। ये पुराणों में लिखा है। मानव होना मुश्किल है और मानव हो भी जाये तो भारत का मानव होना मुश्किल है। भोग विलासिताओं की तरफ अगर आपको जाना हो तो निश्चित चले जाइए यूरोप अमेरिका की साइड। और किसी कंट्री में आप भोग विलासिताओं की कोई सीमा नहीं है जहाँ मन करें जाना चाहो चले जाओं। लेकिन ज्ञान और भगवान को प्राप्त करना हो तो तुम्हे भारत का ही महो करना पड़ेगा। अगर आपको ज्ञान चाहिए, भगवान चाहिए तो दोनों के लिए तुम्हे यहाँ आना पड़ेगा। १ मानव होना, 2 फिर भारत का मानव होना । 3भारत के मानव होने के बाद भी सत्संग से बंधन होना बहुत मुश्किल है। ये तीज जिसको मिल जाये भगवान से कोई दूर नहीं कर सकता। और महाराज जी ने कहा की किसी - किसी को तीनो चीजे मिल गई है। इसका मतलब है यात्रा प्रारम्भ हो चुकी है बस मंजिल का इंतजार है।
इसी के साथ कथा का वृतांत सुनाते हुए कल का कथा क्रम याद कराया की राजा परिक्षित को श्राप लगा कि सातवें दिन तुम्हारी मृत्यु सर्प के डरने से हो जाएंगी। जिस व्यक्ति को यहाँ पता चल जाये की उसकी मृत्यु सातवें दिन हो वो क्या करेगा क्या सोचेगा ? राजा परीक्षित ने यह जान कर उसी क्षण अपना महल छोड़ दिया। राजा परीक्षित ने अपना सर्वस्व त्याग कर अपनी मुक्ति का मार्ग खोजने निकल पड़े गंगा के तट पर। गंगा के तट पर पहुंचकर जितने भी संत महात्मा थे सब से पूछा की जिस की मृत्यु सातवें दिन है उस जीव को क्या करना चाहिए। किसी ने कहा गंगा स्नान करो, किसी ने कहा गंगा के तट पर आ गए हो इससे अच्छा क्या होगा, हर की अलग अलग उपाय बता रहा है।
तभी वहां भगवान शुकदेव जी महाराज पधारे, जब राजा परीक्षित भगवान शुकदेव जी महाराज के सामने पहुंचे तो उनको राजा ने शाष्टांग प्रणाम किया। शाष्टांग प्रणाम करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। शुकदेव जी महाराज जो सबसे बड़े वैरागी है चूड़ामणि है उनसे राजा परीक्षित जी ने प्रश्न किया कि हे गुरुदेव जो व्यक्ति सातवें दिन मरने वाला हो उस व्यक्ति को क्या करना चाहिए? किसका स्मरण करना चाहिए और किसका परित्याग करना चाहिए? कृपा कर मुझे बताइये...
- अब शुकदेव जी ने मुस्कुराते हुए परीक्षित से कहा की हे राजन ये प्रश्न केवल आपके कल्याण का ही नहीं अपितु संसार के कल्याण का प्रश्न है। तो राजन जिस व्यक्ति की मृत्यु सातवें दिन है उसको श्रीमद भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए तो उसका कल्याण निश्चित है। श्रीमद भागवत में 18000 श्लोक, 12 स्कन्द और 335 अध्याय है जो जीव सात दिन में सम्पूर्ण भागवत का श्रवण करेगा वो अवश्य ही मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है। राजा परीक्षित ने शुकदेव जी से प्रार्थना की हे गुरुवर आप ही मुझे श्रीमद भागवत का ज्ञान प्रदान करे और मेरे कल्याण का मार्ग प्रशस्थ करे।
भगवान मानव को जन्म देने से पहले कहते हैं ऐसा कर्म करना जिससे दोबारा जन्म ना लेना पड़े। मानव मुट्ठी बंद करके यह संकल्प दोहराते हुए इस पृथ्वी पर जन्म लेता है। प्रभु भागवत कथा के माध्यम से मानव का यह संकल्प याद दिलाते रहते हैं। भागवत सुनने वालों का भगवान हमेशा कल्याण करते हैं। भागवत ने कहा है जो भगवान को प्रिय हो वही करो, हमेशा भगवान से मिलने का उद्देश्य बना लो, जो प्रभु का मार्ग हो उसे अपना लो, इस संसार में जन्म-मरण से मुक्ति भगवान की कथा ही दिला सकती है। भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। राजा परीक्षित के कारण है भागवत कथा पृथ्वी के लोगो को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं।
- श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस पर श्री राम एवं श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का वृतांत सुनाया जाएगा। कल ग्राम गहाल पधारेंगे राष्ट्रीय संत महामंडलेश्वर 1008 श्री दादू जी महाराज आयोजक परिवार ने सभी धर्मप्रेमी जनता से कथा में आने का आग्रह किया कथा दोपहर 12 बजे से 4 बजे तक होगी